A Sequel Of Romance(In Hindi)- अग्नीशीखा
अध्याय-१
भाग - १
मै हुं शीखा। एक साधारण लङकी, आपनी उस दुनीया मै जीने बाली, जॉहा वास्तव उसकी बहुत बङी दुसमन हुया करती थी। आज मै आपको बताने वाली हुं कुछ टुकरे आपनी जीन्ढगी की ।
शूरु करते हैं बजपन से। एक छोटिसी लङकी चल परी, इस विसाल दुनीया की नये नये पन्नो को खोलने के लिय। सबसे पेहले परीचय कराते है अपनी मा से । मेरी मा बहुत ही विस्मयकारी मनुष्य हैं जोकी अब मै समझ सकती हुं । पर उस नादानी के दनो मे बह पहाङ चङना जैसा कठीन लगा। रुढृानी पर स्वर्गवधु, उनके ढंग मेरे लिय बहुत ही कठीन था । वह तरीकायं मेरे लिय जितना अचंभित करने वाला था उतना ही क्लेशकर भी था । हर मा की तरहा मेरी मा भी चाहती थी मै जीन्दगी की नैतीकता खुब सिखु पर आघात से । मा अपनी मार्गदर्शक तरीकाय अपनी इच्छानुसार मुझपर लाघु करती रही । लगी न अजीब ? शारीरीक या मानसिक जो भी रास्ते मेरे सामने खुलता , वह सब वेढना दायक होता ।
मेरे ढिमाग मे एक ही सवाल चलता रहा कौं मेरी मा ईतनी नखुश थी ? मै ढूर करना चाहती थी वह गम । कौंकी वह थी मेरी सबकुछ, मेरी दुनीया । और अपनी दुनीया समेटना कौन न चाहे ? उनकी क्रोध , मायूसी मेरे लिय एक बेचैनी का क्षेत्र तैयार कर रहा था । इसी चाह मे मै वह बनती रही जो मा को भाता । पर बनते बनते कुछ अलग सी सोछ और बरताव होने लगा ।
बहुत सारे दोस्त थे मेरे । मेरे नय बरताव का स्वागत हुआ एक जोरदार धङाम् से । अब वह दिन दुर न था जब सभी मेरे से खेलने को राजी न थे । यैंही तो हुं मै- खेलने की मैदान मे । सभी नराज थे मुझसे । किसीने नही खेला और मै खुब रोई । जो हो रहा था वौ समझ के बाहर था । डरी सी थी । जो दोस्त बंचे बह थे बङे बङे माठ, खुला आसमान, पेङो की छाव और मा , उस गॅाव मे।
अचानक एकदिन कोई दस्तक आ पङी । मै मिली अपने नय दोस्त अग्नी से । तब मै सिर्फ़ ५ साल की थी । तभी हुया खुशीयों का बहुत ऊँची ऊङान । पर वह रुकेगी भी तो ऐसे इह सोच के बाहर था ।