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Sequel Of Romance-अग्नीशीखा


अनैच्छिक विवशता

अध्याय - २ भाग - १

चलने लगी मैं अपनी स्वतंत्रता खोने की मार्ग पर नयी दैनिक जीबन के साथ | शहरीकरण का दुनिआ उस ८ साल की बच्ची को नहीं भाता | नए घर, नए लोग, नयी बाताबरण अच्छा तो बहुत लगा | पर खूब समझ आ रहा था के कुछ नामौजूद था | हमारा नया घर बहुत सुन्दर से सजाया हुआ था पर वैसा तो नहीं जैसा मैं ने सोचा था |

जिस दिन उस बड़े से स्कूल के असेंबली में कदम रखी एक आवाज़ बोल उठा ' भाग शिखा , अपने अग्नि के पास लौट जा ' | माँ की भ्रूभंग उस आवाज़ को रोक के मुझे हाथ पकड़ के अंदर ले गयी | अभी तो रोज स्कूल जाती हूँ मैं | अच्छा लगता हैं पड़ना |

पर एक छिपी इच्छा , वो अधूरा रहने लगा था | उसी को छिपानेका चेस्टा परिश्रम में बदल ने लगा |अजब सी दुनिआ लगा ये शहर मुझे | अपने आप को भी अजब ही लगने लगा था | छुट्टियाँ बीतता था चिम्निओ का धुआँ , बड़े बड़े मकान , पैर पौधे बिन सूखा रास्ता देख और अग्नि का चिठ्ठी पड़ते हुए |

खुले मैदान में दौड़ना चाहती थी,वह हवाएं महसूस करना चाहती थी, अग्नि के साथ कच्चे आम खाकर दांत खट्टा हो जाने की यादें वापस चाहती थी | स्कूल जाते वक़्त एक सुन्दर सा पार्क दीखता था , बहुत सारे अनजान फूलो से भरे | वही देख कर मन बेहला लेती थी | स्कूल प्लेग्राउंड भी था, पर वह मुझे किसी बड़े प्रतिभासंपन्न कलाकार का बहुमूल्य आविष्कार लगता था , जिसे छूने से ही भारी जुरमाना भरना पड़ेगा | बेझीचक होक खेलना वह नमुमकिन था |

बचपन से माँ ही मेरा पढाई लिखाई देखती थी | एकमात्र अभिभावक , तो क्या हुआ अगर उनकी तरिकाए अजब हुआ करता था ? वही थी मेरी सबसे करीबी और प्रिय इंसान |

पहला बार्षिक परिखा का फल स्वभाबिक रूप से माँ का मन मुताबिक हुआ नहीं | उसका परिणति भी भयंकर रूप ले लिआ जिसे हमारे शिक्षानीति में दंड बोलते हैं | ८ इ साल में खमखा कुछ ज्यादा ही उग्रता दिख गयी इस देशी शिक्षानीति के कारण | ८ इ साल में खमखा कुछ ज्यादा ही उग्रता दिख गयी इस देशी शिक्षानीति के कारण | एक अनैच्छिक प्रबृति का जन्म हुआ भय और अकेलेपन से | उतना दोस्त नहीं बना पाया , ब्यस्त मन की बकवादी समझने के चक्कर में |

६ माह बाद मिलना हुआ मिनाक्षी से , मरी पहली दोस्त स्कूल में | बहुत पसंद थी वो मुझे | उसकी भी बहुत फवौरिट बनने लगी थी मैं |

एक दिन बैठी ही थी स्कूल में पर मेरा बाजु बाला सीट खली ही रह गया | बार बार देखती रही, पर वह जगह खली ही रह गयी | आयी नहीं मिनाक्षी | उसके बाबा का ट्रांस्फ़ेरेबल जॉब हैं इसीलिए उसको जाना पड़ा | बार्षिक परीक्षा आ गयी | उसके जाने के बाद मैं मन लगा के पड़ने लगी | साइंस , गणित , ऍंगरेजी | अभी माँ से बहुत ज्यादा डर लगने लगा था | कुछ हो रहा है उन्हें हररोज | बहुत डर लगता है | पड़ना अच्छा नहीं लगता और |

छोटी सी इच्छा कहीं खो जा रही है | वह बोल रही है जोर से '' अग्नि और मिनाक्षी को ढूंडो '' तभी ये मन और क्रान्तिकारी हो उठता था | जी तो करता था उनको पकड़के छिपा दूँ मेरी लुकाछिपी के दुनिआ मै जहाँ से कोई उन्हें मुझ से दूर न ले जा पाए | वह चीख कहीं धुंदला गया मेरी पहली निर्णय के साथ | वह क्रान्ति हो उठा मरे जीबन का बाध्यकरण |

जारी .....................


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